मेवाड़ का राणा (1433-68)। मेवाड़ के सबसे महान शासकों में उसकी गणना की जाती है। उन्होंने मालवा व गुजरात के सुल्तानों की शक्तिशाली सेनाओं को मेवाड़ से दूर रखा। वह महान वास्तु-निर्माता थे । उन्होंने मेवाड़ की रक्षा के लिए स्थापित 84 दुर्गों में से 32 दुर्गा का निर्माण करवाया। इन बाद कुम्भा ने अपना दुर्गों में कुम्भलगढ़ सैनिक दृष्टि से सबसे अधिक उल्लेखनीय है। उसने विजयस्तम्भ का निर्माण कराया। वह केवल महान शासक तथा योद्धा ही नहीं .थे वरन् प्रतिभाशाली कवि, प्रकांड विद्वान, शासकों द्वारा प्रभुसत्ता व प्रसिद्ध संगीतज्ञ भी थे
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सोमवार, 22 मई 2023
glory of rajsthan.. maharana kumbha 🔥
👉कुम्भा की उपाधियां:-
महाराणा, महाराजाधिराज, रायरायान, हिन्दू सुरतान (समकालीन मुस्लिम शासकों द्वारा प्रदत्त), राणो रासो (विद्वानों का आश्रयदाता). अभिनय भरताचार्य . (संगीत निपुणता के कारण), हाल गुरु (गिरि दुर्गो का स्वामी), छाप गुरु (छापामार युद्ध में पारंगता), महादानी या दानगुरु, प्रजापालक आदि
👉मेवाड़ का राणा (1433-68) सबसे महान शासकों में गणना की जाती है। उसने मालवा , गुजरात के सुल्तानों की शक्तिशाली सेनाओं को मेवाड़ से दूर रखा। वह महान वास्तु निर्माता थे उसने मेवाड़ की रक्षा के लिए स्थापित 84 दुर्गा में से 32 दुगों का निर्माण करवाया। इन दुगों में कुम्भलगढ़ सैनिक दृष्टि से सबसे तीअधिक उल्लेखनीय है।
कुम्भा ने अपना ध्यान विजयों की ओर मोड़ा। उन्होंने(बूंदी), हाड़ावती (कोटा), चाटसू, माल्तुरा, स्तम्भ का निर्माण कराया। वह केवल अमरदादरी, नारदीय नगर (नरवर), नारायण, . गिरीपुर (डूंगरपुर) तथा सारंगपुर पर विजय प्राप्त की और इन क्षेत्रों के शासकों द्वारा प्रभुसत्ता किये जाने पर कुम्भा ने उनके क्षेत्र लौटा दिए। किन्तु सपादलक्ष (सांभर), डीडवाना, मंडोर, नागौर, रणथंभौर, सिरोही, गागरन, आबू, मांडलगढ़, अजयमेरू (अजमेर) तथा टोडा जीतकर अपने राज्य में मिला लिया।
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