रविवार, 4 जून 2023

भारत-पाकिस्तान-संबंध..(reason of battle and undevelopment)

भारत-पाकिस्तान:-
पाकिस्तान और भारत के बीच संबंध सदैव ही कटु रहे हैं और इसका कारण पाकिस्तान और भारत के विभाजन के तरीके में निहित है। 1947 के विभाजन से दोनों ही देशों के सम्मुख कुछ नई समस्याएं खड़ी हो गई। दोनों देश अस्त्रों की होड़ में लग गए, जिसके परिणामस्वरूप भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ। इस कारण दोनों देशों के विकास में बाधा खड़ी हुई। आरंभ से ही पाकिस्तान सभी क्षेत्रों में भारत की बराबरी करने की कोशिश कर रहा था। उसकी दूसरी समस्या अपनी अलग पहचान बनाने की भी थी। पाकिस्तान की प्रतिरक्षा की दृष्टि में भारत का आकार, जनसंख्या, संसाधन और कार्यक्षमताएं गंभीर चुनौती बने हुए थे। इसका परिणाम यह हुआ कि पाकिस्तान अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने में विशेष रूप से संलग्न रहा। इस उद्देश्य से उसने विश्व के अनेक देशों से सैनिक सहायता मांगी। पाकिस्तान पश्चिमी गुट में शामिल हो गया और इस प्रकार वह भी शीत युद्ध का भागीदार बन गया। भारत ने भी प्रतिरक्षा के लिए अपनी सैन्य शक्ति को सुदृढ़ किया। हालांकि, भारत ने सदैव एक साथ बैठकर विभिन्न मुद्दों के समाधान निकालने की वकालत की।

कश्मीर मामला
कश्मीर, भारत और पाकिस्तान के बीच एक अहम् समस्या बना रहा। भारत ने 26 अक्टूबर, 1947 को कश्मीर को अपना हिस्सा बना लिया, लेकिन पाकिस्तान इसे मानने के लिए तैयार नहीं था और उसने जनजातीय कबीलों की आड़ में छुपकर आक्रमण किया। भारत ने पाकिस्तानी आक्रमणकारियों को कश्मीर से खदेड़ दिया। इसमें शेख अब्दुल्लाह के नेतृत्व में जन-समुदाय ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। दुर्भाग्यपूर्ण है, कि भारत ने इस काम को पूरा किए बगैर संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् में शिकायत दर्ज कर दी। यह मामला जनवरी, 1948 में दर्ज किया गया, फलतः 1 जनवरी, 1949 को युद्ध-विराम की घोषणा की गई। 1947 में, भारत ने अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण के अंतर्गत कश्मीर में जनमत संग्रह कराने का प्रस्ताव रखा लेकिन 1955 में कुछ बदली हुई परिस्थितियों के कारण, इसे वापस ले लिया गया। हालांकि, कश्मीर के मामले पर संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कूटनीतिक लड़ाई चलती रही, लेकिन युद्ध की स्थिति 1964 तक नहीं आई। लेकिन कश्मीर की समस्या का कोई समाधान नहीं निकला और दोनों देशों के संबंधों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। वस्तुतः अब दोनों देश, अपनी सीमा की रक्षा करने को तत्पर हो गए और इनमें से कोई भी बलपूर्वक इसे बदलने की इच्छा व्यक्त नहीं करता।

सिंधु नदी जल विवादः 
विभाजन ने अनेक समस्याएं उत्पन्न कीं, जिनमें से एक है-सिंधु नदी जल बंटवारा। दोनों देश सिंधु और उसकी सहायक नदियों के जत का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करना चाहते थे। भारत और पाकिस्तान खाद्यान्न में आत्मनिर्भर होना चाहते थे, अतः वे सिंधु के जल का अधिक से अधिक उपयोग करना चाहते थे। विभाजन के बाद, सिंधु नदी से सिंचित होने वाले 280 लाख एकड़ क्षेत्र में 50 लाख एकड़ भूमि भारत के पास रह गई। अधिकांश पश्चिमी नदियां समुद्र में मिल जाती थीं। जबकि पाकिस्तानी नहरें पूर्वी नदियों पर आश्रित थीं। इन नदियों का पानी पूर्वी पंजाब से होकर पाकिस्तान में जाता था। भारत का कृषि विकास भी रावी. व्यास और सतलज जैसी पूर्वी नदियों के जल पर आश्रित था। पाकिस्तान की नहरों का वह भाग, जो नदी से जुड़ा था, भारतीय भू-भाग में पड़ता था। तनाव का कारण यही था।
पाकिस्तान में बाढ़ आने या अकाल पड़ने पर पाकिस्तानी शासक भारत को दोषी ठहराते थे। उन्होंने पानी की समस्या के लिए भारत को दोषी ठहराया और न्याय संगत बंटवारे की मांग की। दूसरी ओर, भारत इस समस्या को सुलझाने के लिए तत्पर था। विश्व बैंक की देखरेख में 17 अप्रैल, 1759 को वाशिंगटन में नहर के जल के बंटवारे से संबंधित अंतरिम समझौता हुआ। इसके बाद दोनों देशों के बीच व्यापक समझौतों का एक सिलसिला चला। 19 सितम्बर, 1969 को करांची में नहर जलसंधि पर हस्ताक्षर किए गए।

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