मंगलवार, 20 जून 2023

ताशकंद में शांति समझौता और शास्त्रीजी की रहस्यपूर्ण मृत्यु(Tashkent Agreement and the mysterious death of a great Prime Minister Lal Bahadur Shastri)


ताशकंद में शांति समझौता

ताशकंद (उज्बेकिस्तान की राजधानी, जो तत्कालीन सोवियत संघ का एक गणराज्य था) में जनवरी 1966 में एक दक्षिण एशिया शांति सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसे सोवियत राष्ट्रपति अलेक्सी कोसिगिन द्वारा प्रायोजित किया गया। यह कोसिगिन की मध्यस्थता से संभव हो सका था कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान और भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री मिले और अपने देशों के बीच सामान्य एवं शांतिपूर्ण संबंधों को पुनः स्थापित करने तथा अपने लोगों के बीच समझ और मैत्रीपूर्ण संबंधों को प्रोत्साहित करने के लिए 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए।

ताशकंद घोषणा का अर्थ था कि भारत और पाकिस्तान के बीच शांति बनाए रखने के लिए एक रूपरेखा बनाना। यह विश्वास किया गया कि दोनों पक्ष स्वयं किसी समझौते पर नहीं पहुंच सकते और इसके लिए सोवियत नेताओं द्वारा तैयार मसौदे पर उन्हें हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया गया। हालांकि, इसे भारत में पूर्ण अनुमोदन नहीं मिला। आलोचकों ने महसूस किया कि समझोता होना चाहिए लेकिन इसमें कोई युद्ध नहीं' समझौता नहीं किया गया और न ही ऐसा कोई प्रावधान था कि पाकिस्तानको कश्मीर में गुरिल्ला आक्रमण को छोड़ देना चाहिए। पाकिस्तान में, समझौते पर बेहद तीखी नाराजगी जाहिर की गई। इसके विरोध में वहां दंगे एवं प्रदर्शन हुए। जुल्फिकार भुट्टो ने अयूब खान एवं इस समझौते से दूरी बना ली, और अंत में इससे अलग होकर अपना खुद का राजनीतिक दल बना लिया।

पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान और भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा सितम्बर युद्ध के बाद शांति स्थापना की दिशा में कदम बढ़ाते हुए ताशकंद समझौता किया गया जिसके प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं-

 1. भारत और पाकिस्तान शक्ति का प्रयोग नहीं करेंगे और अपने-अपने झगड़ों कोशांतिपूर्ण ढंग से तय करेंगे।

2. दोनों देश 25 फरवरी, 1966 तक अपनी सेनाएं 5 अगस्त, 1965 की सीमा रेखा पर पीछे हटा लेंगे। 

3. इन दोनों देशों के बीच आपसी हित के मामलों में शिखर वार्ताएं तथा अन्य स्तरों पर वार्ताएं जारी रहेंगी।

4. भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेपन करने पर आधारित होंगे।

5. दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध फिर से स्थापित कर दिए जाएंगे।

6. एक-दूसरे के बीच में प्रचार के कार्य को फिर से सुचारू कर दिया जाएगा।

7. आर्थिक एवं व्यापारिक संबंधों तथा संचार संबंधों की फिर से स्थापना तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान फिर से शुरू करने पर विचार किया जाएगा।

8. ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न की जाएंगी कि लोगों का निर्गमन बंद हो। 

9. शरणार्थियों की समस्याओं तथा अवैध प्रवासी प्रश्न पर भी विचार-विमर्श जारी रखा जाएगा तथा हाल के संघर्ष में जब्त की गई एक-दूसरे की सम्पत्ति को लौटाने के प्रश्न पर विचार किया जाएगा।

इस समझौते के क्रियान्वयन के फलस्वरूप दोनों पक्षों की सेनाएं उस सीमा रेखा पर वापस लौट गई, जहां पर ये युद्ध के पूर्व में तैनात थीं। परंतु इस घोषणा से भारत-पाकिस्तान के दीर्घकालीन संबंधों पर गहरा प्रभाव पहा ।


शास्त्रीजी की रहस्यपूर्ण मृत्यु


11 जनवरी, 1966 की सुबह, ताशकंद घोषणा के हस्ताक्षर के बाद वाली सुबह, लाल बहादुर शास्त्री हृदयाघात से प्राणहीन हो गए। उनकी मृत्यु पर विवाद उत्पन्न हो गया और साथ ही अफवाह फैली कि उन्हें जहर देकर मारा गया है। इस मामले में सेंट्रल इंटेलीजेंस एजेंसी (अमेरिका की सीआईए) का हाथ होने का भी संदेह था, जैसाकि पश्चिम भारत की आणविक महत्वाकांक्षाओं को लेकर शंका में था और दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन में मुश्किल हो रही थी। यह विवाद अभी तक खत्म नहीं हुआ है।
पहली जांच राजनारायण ने करवाई थी, जो बिना किसी परिणाम के समाप्त हो गई। और भारतीय संसद लाइब्रेरी में उसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। वर्ष 2009 में जब यह सवाल उठाया गया तो भारत सरकार की ओर से जवाब दिया गया कि शास्त्री जी के निजी डॉक्टर आर. एन. चुघ और रूस के कुछ डॉक्टरों ने मिलकर उनकी मौत की जांच तो की थी परंतु सरकार के पास उसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। वर्ष 2009 में 'साउथ एशिया पर सीआईए की नजर' नामक पुस्तक के लेखक अनुज घर ने सूचना के अधिकार के अंतर्गत मांगी गई जानकारी पर प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से यह कहा गया कि, "शास्त्रीजी की मृत्यु के दस्तावेज सार्वजनिक करने से हमारे देश के अंतरराष्ट्रीय संबंध खराब हो सकते हैं तथा इस रहस्य से पर्दा उठते ही देश में उथल-पुथल मचने के अलावा संसदीय विशेषाधिकारों को भी ठेस पहुंच सकती है। ये तमाम कारण हैं जिसमें इस सवाल का जवाब नहीं दिया जा सकता" ।

कोई टिप्पणी नहीं:

प्रसिद्ध लोकदेवता रामदेवजी

बाबा रामदेव:- सम्पूर्ण राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, पंजाब आदि राज्यों में 'रामसा पीर', 'रुणीचा रा धणी' व '...